SHLOKA
तेषामेवानुकम्पार्थमहमज्ञानजं तमः।
नाशयाम्यात्मभावस्थो ज्ञानदीपेन भास्वता।।10.11।।
नाशयाम्यात्मभावस्थो ज्ञानदीपेन भास्वता।।10.11।।
PADACHHED
तेषाम्_एव_अनुकम्पार्थम्_अहम्_अज्ञानजम्, तम:,
नाशयामि_आत्म-भावस्थ:, ज्ञान-दीपेन, भास्वता ॥ ११ ॥
नाशयामि_आत्म-भावस्थ:, ज्ञान-दीपेन, भास्वता ॥ ११ ॥
ANAVYA
(हे अर्जुन!) तेषाम् अनुकम्पार्थम् आत्मभावस्थ: अहम्
एव अज्ञानजं तम: भास्वता ज्ञानदीपेन नाशयामि।
एव अज्ञानजं तम: भास्वता ज्ञानदीपेन नाशयामि।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
{(हे अर्जुन!) [हे अर्जुन!]}, तेषाम् [उनके ((ऊपर))], अनुकम्पार्थम् [अनुग्रह करने के लिये], आत्मभावस्थ: [((उनके)) अन्त:-करण में स्थित हुआ], अहम् [मैं ((स्वयं))],
एव [ही ((उनके))], अज्ञानजम् [अज्ञान से उत्पन्न], तम: [अन्धकार को], भास्वता [प्रकाशमय], ज्ञानदीपेन [तत्त्वज्ञानरूप दीपक के द्वारा], नाशयामि [नष्ट कर देता हूँ।],
एव [ही ((उनके))], अज्ञानजम् [अज्ञान से उत्पन्न], तम: [अन्धकार को], भास्वता [प्रकाशमय], ज्ञानदीपेन [तत्त्वज्ञानरूप दीपक के द्वारा], नाशयामि [नष्ट कर देता हूँ।],
ANUVAAD
(हे अर्जुन !) उनके ((ऊपर)) अनुग्रह करने के लिये ((उनके)) अन्त:करण में स्थित हुआ मैं ((स्वयं))
ही ((उनके)) अज्ञान से उत्पन्न अन्धकार को प्रकाशमय तत्त्वज्ञानरूप दीपक के द्वारा नष्ट कर देता हूँ।
ही ((उनके)) अज्ञान से उत्पन्न अन्धकार को प्रकाशमय तत्त्वज्ञानरूप दीपक के द्वारा नष्ट कर देता हूँ।