Chapter 1 – अर्जुनविषादयोग Shloka-45

Chapter-1_1.45

SHLOKA (श्लोक)

अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम्।
यद्राज्यसुखलोभेन हन्तुं स्वजनमुद्यताः।।1.45।।

PADACHHED (पदच्छेद)

अहो, बत, महत्_पापम्‌, कर्तुम्, व्यवसिता:, वयम्‌,
यत्_राज्य-सुख-लोभेन, हन्तुम्‌, स्व-जनम्_उद्यता: ॥ ४५ ॥

ANAVYA (अन्वय-हिन्दी)

अहो बत वयं महत्‌ पापं कर्तुं व्यवसिता:
यत्‌ राज्यसुखलोभेन स्वजनं हन्तुम्‌ उद्यता:।

Hindi-Word-Translation (हिन्दी शब्दार्थ)

अहो [हा!], बत [शोक!], वयम् [हम लोग ((बुद्धिमान् होकर भी))], महत् [महान्], पापम् [पाप], कर्तुम् [करने को], व्यवसिता: [तैयार हो गये हैं,],
यत् [जो], राज्यसुखलोभेन [राज्य और सुख के लोभ से], स्वजनम् [स्वजनों को], हन्तुम् [मारने के लिये], उद्यता: [उद्यत हो गये हैं।],

हिन्दी भाषांतर

हा! शोक! हम लोग ((बुद्धिमान् होकर भी)) महान् पाप करने को तैयार हो गये हैं,
जो राज्य और सुख के लोभ से स्वजनों को मारने के लिये उद्यत हो गये हैं।

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