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Gita Chapter-1 Shloka-44

Chapter-1_1.44

SHLOKA

उत्सन्नकुलधर्माणां मनुष्याणां जनार्दन।
नरकेऽनियतं वासो भवतीत्यनुशुश्रुम।।1.44।।

PADACHHED

उत्सन्न-कुल-धर्माणाम्‌, मनुष्याणाम्‌, जनार्दन,
नरके_अनियतम्‌, वास:, भवति_इति_अनुशुश्रुम ॥ ४४ ॥

ANAVYA

(हे) जनार्दन! उत्सन्नकुलधर्माणां मनुष्याणाम्‌
अनियतं नरके वास: भवति इति (अहम्) अनुशुश्रुम।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

(हे) जनार्दन! [हे जनार्दन!], उत्सन्नकुलधर्माणाम् [जिनका कुल-धर्म नष्ट हो गया है ऐसे)], मनुष्याणाम् [मनुष्यों का],
अनियतम् [अनिश्चित काल तक], नरके [नरक में], वास: [वास], भवति [होता है,], इति (अहम्) [ऐसा (हम)], अनुशुश्रुम [सुनते आये हैं।],

ANUVAAD

हे जनार्दन! जिनका कुल-धर्म नष्ट हो गया है ऐसे मनुष्यों का
अनिश्चित काल तक नरक में वास होता है, ऐसा (हम) सुनते आये हैं।

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