Chapter 1 – अर्जुनविषादयोग Shloka-40

Chapter-1_1.40

SHLOKA

कुलक्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्माः सनातनाः।
धर्मे नष्टे कुलं कृत्स्नमधर्मोऽभिभवत्युत।।1.40।।

PADACHHED

कुल-क्षये, प्रणश्यन्ति, कुल-धर्मा:, सनातना:,
धर्मे, नष्टे, कुलम्‌, कृत्स्नम्_अधर्म:_अभिभवति_उत ॥ ४० ॥

ANAVYA

कुलक्षये सनातना: कुलधर्मा: प्रणश्यन्ति, धर्मे नष्टे
कृत्स्नं कुलम्‌ अधर्म: उत अभिभवति।

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कुलक्षये [कुल के नाश से], सनातना: [सनातन], कुलधर्मा: [कुलधर्म], प्रणश्यन्ति [नष्ट हो जाते है,], धर्मे [धर्म के], नष्टे [नाश हो जाने पर],
कृत्स्नम् [सम्पूर्ण], कुलम् [कुल में], अधर्म: [पाप], उत [भी], अभिभवति [बहुत फैल जाता है।],

ANUVAAD

कुल के नाश से सनातन कुलधर्म नष्ट हो जाते है, धर्म के नाश हो जाने पर
सम्पूर्ण कुल में पाप भी बहुत फैल जाता है।

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