Gita Chapter-1 Shloka-41
SHLOKA
अधर्माभिभवात्कृष्ण प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रियः।
स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जायते वर्णसङ्करः।।1.41।।
स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जायते वर्णसङ्करः।।1.41।।
PADACHHED
अधर्माभिभवात्_कृष्ण, प्रदुष्यन्ति, कुल-स्त्रिय:,
स्त्रीषु, दुष्टासु, वार्ष्णेय, जायते, वर्ण-सङ्कर: ॥ ४१ ॥
स्त्रीषु, दुष्टासु, वार्ष्णेय, जायते, वर्ण-सङ्कर: ॥ ४१ ॥
ANAVYA
(हे) कृष्ण! अधर्माभिभवात् कुलस्त्रिय: प्रदुष्यन्ति (च)
(हे) वार्ष्णेय! स्त्रीषु दुष्टासु वर्णसङ्कर: जायते।
(हे) वार्ष्णेय! स्त्रीषु दुष्टासु वर्णसङ्कर: जायते।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
(हे) कृष्ण! [हे कृष्ण!], अधर्माभिभवात् [पाप के अधिक बढ़ जाने से], कुलस्त्रिय: [कुल की स्त्रियाँ], प्रदुष्यन्ति (च) [अत्यन्त दूषित हो जाती हैं (और)],
(हे) वार्ष्णेय! [हे वार्ष्णेय!], स्त्रीषु [स्त्रियों के], दुष्टासु [दूषित हो जाने पर], वर्णसङ्कर: [वर्णसंकर], जायते [उत्पन्न होता है।],
(हे) वार्ष्णेय! [हे वार्ष्णेय!], स्त्रीषु [स्त्रियों के], दुष्टासु [दूषित हो जाने पर], वर्णसङ्कर: [वर्णसंकर], जायते [उत्पन्न होता है।],
ANUVAAD
हे कृष्ण! पाप के अधिक बढ़ जाने से कुल की स्त्रियाँ अत्यन्त दूषित हो जाती हैं (और)
हे वार्ष्णेय! स्त्रियों के दूषित हो जाने पर वर्णसंकर उत्पन्न होता है।
हे वार्ष्णेय! स्त्रियों के दूषित हो जाने पर वर्णसंकर उत्पन्न होता है।