SHLOKA
निहत्य धार्तराष्ट्रान्नः का प्रीतिः स्याज्जनार्दन।
पापमेवाश्रयेदस्मान्हत्वैतानाततायिनः।।1.36।।
पापमेवाश्रयेदस्मान्हत्वैतानाततायिनः।।1.36।।
PADACHHED
निहत्य, धार्तराष्ट्रान्_न:, का, प्रीति:, स्यात्_जनार्दन,
पापम्_एव_आश्रयेत्_अस्मान्_हत्वा_एतान्_आततायिन: ॥ ३६ ॥
पापम्_एव_आश्रयेत्_अस्मान्_हत्वा_एतान्_आततायिन: ॥ ३६ ॥
ANAVYA
(हे) जनार्दन! धार्तराष्ट्रान् निहत्य न: का प्रीति: स्यात्;
एतान् आततायिन: हत्वा (तु) अस्मान् पापम् एव आश्रयेत्।
एतान् आततायिन: हत्वा (तु) अस्मान् पापम् एव आश्रयेत्।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
(हे) जनार्दन! [हे जनार्दन!], धार्तराष्ट्रान् [धृतराष्ट्र के पुत्रों को], निहत्य [मारकर], न: [हमें], का [क्या], प्रीति: [प्रसन्नता], स्यात् [होगी?],
एतान् [इन], आततायिन: [आततायियों को], हत्वा (तु) [मारकर (तो)], अस्मान् [हमें], पापम् [पाप], एव [ही], आश्रयेत् [लगेगा।]
एतान् [इन], आततायिन: [आततायियों को], हत्वा (तु) [मारकर (तो)], अस्मान् [हमें], पापम् [पाप], एव [ही], आश्रयेत् [लगेगा।]
ANUVAAD
हे जनार्दन! धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारकर हमें क्या प्रसन्नता होगी?
इन आततायियों को मारकर (तो) हमें पाप ही लगेगा।
इन आततायियों को मारकर (तो) हमें पाप ही लगेगा।