Chapter 1 – अर्जुनविषादयोग Shloka-35

Chapter-1_1.35

SHLOKA

एतान्न हन्तुमिच्छामि घ्नतोऽपि मधुसूदन।
अपि त्रैलोक्यराज्यस्य हेतोः किं नु महीकृते।।1.35।।

PADACHHED

एतान्_न, हन्तुम्_इच्छामि, घ्नत:_अपि, मधुसूदन,
अपि, त्रैलोक्य-राज्यस्य, हेतो:, किम्‌, नु, मही-कृते ॥ ३५ ॥

ANAVYA

(हे) मधुसूदन! (माम्) घ्नत: अपि (वा) त्रैलोक्यराज्यस्य हेतो:
अपि (अहम्) एतान्‌ हन्तुं न इच्छामि; महीकृते नु किम्‌।

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(हे) मधुसूदन! [हे मधुसूदन!], {(माम्) [मुझे]}, घ्नत: [मारने पर], अपि (वा) [भी (अथवा)], त्रैलोक्यराज्यस्य [तीनों लोकों के राज्य के], हेतो: [लिये],
अपि (अहम्) [भी (मैं)], एतान् [इन सबको], हन्तुम् [मारना], न [नहीं], इच्छामि [चाहता; ((फिर))], महीकृते [पृथ्वी के लिये (तो)], नु किम् [कहना ही क्या है?],

ANUVAAD

हे मधुसूदन! (मुझे) मारने पर भी (अथवा) तीनों लोकों के राज्य के लिये
भी (मैं) इन सब को मारना नहीं चाहता; ((फिर)) पृथ्वी के लिये (तो) कहना ही क्या है?

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