Chapter 1 – अर्जुनविषादयोग Shloka-27.2-28.1

Chapter-1_1.27.28

SHLOKA

तान्समीक्ष्य स कौन्तेयः सर्वान्बन्धूनवस्थितान्।।1.27.2।।
कृपया परयाऽऽविष्टो विषीदन्निदमब्रवीत्।।1.28.1।।

PADACHHED

तान्_समीक्ष्य, स:, कौन्तेय:, सर्वान्_बन्धून्_अवस्थितान्‌, ॥ २७ ॥
कृपया, परया_आविष्ट:, विषीदन्_इदम्_अब्रवीत् ॥२८.१॥

ANAVYA

तान्‌ अवस्थितान्‌ सर्वान्‌ बन्धून् समीक्ष्य स: कौन्तेय:
परया कृपया आविष्ट: विषीदन्‌ इदम्‌ (वचनम्) अब्रवीत्‌।

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तान् [उन], अवस्थितान् [उपस्थित], सर्वान् [सम्पूर्ण], बन्धून् [बन्धुओं को], समीक्ष्य [देखकर], स: [वे], कौन्तेय: [कुन्ती के पुत्र ((अर्जुन))],
परया [अत्यन्त], कृपया [करुणा से], आविष्ट: [युक्त होकर], विषीदन् [शोक करते हुए], इदम् [यह], {(वचनम्) [वचन]}, अब्रवीत् [बोले।],

ANUVAAD

उन उपस्थित सम्पूर्ण बन्धुओं को देखकर वे कुन्ती के पुत्र ((अर्जुन))
अत्यन्त करुणा से युक्त होकर शोक करते हुए यह (वचन) बोले।

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