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Chapter 14 – गुणत्रयविभागयोग Shloka-6

Chapter-14_1.6

SHLOKA

तत्र सत्त्वं निर्मलत्वात्प्रकाशकमनामयम्।
सुखसङ्गेन बध्नाति ज्ञानसङ्गेन चानघ।।14.6।।

PADACHHED

तत्र, सत्त्वम्‌, निर्मलत्वात्_प्रकाशकम्_अनामयम्‌,
सुख-सङ्गेन, बध्नाति, ज्ञान-सङ्गेन, च_अनघ ॥ ६ ॥

ANAVYA

(हे) अनघ! तत्र सत्त्वं (तु) निर्मलत्वात्‌ प्रकाशकम्‌ (च) अनामयम् (वर्तते), (तत्)
सुखसङ्गेन च ज्ञानसङ्गेन बध्नाति।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

(हे) अनघ! [हे निष्पाप! ((अर्जुन))], तत्र [उन ((तीनों गुणों)) में], सत्त्वम् (तु) [सत्त्व गुण (तो)], निर्मलत्वात् [निर्मल होने के कारण], प्रकाशकम् (च) [प्रकाश करने वाला (और)], अनामयम् (वर्तते) [विकार रहित है,], {(तत्) [वह]},
सुखसङ्गेन [सुख के सम्बन्ध से], च [और], ज्ञानसङ्गेन [ज्ञान के सम्बन्ध से अर्थात् उसके अभिमान से], बध्नाति [बाँधता है।],

ANUVAAD

हे निष्पाप! ((अर्जुन)) उन ((तीनों गुणों)) में सत्त्व गुण (तो) निर्मल होने के कारण प्रकाश करने वाला (और) विकार रहित है, (वह)
सुख के सम्बन्ध से और ज्ञान के सम्बन्ध से अर्थात् उसके अभिमान से बाँधता है।

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