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Chapter 14 – गुणत्रयविभागयोग Shloka-14

Chapter-14_1.14

SHLOKA

यदा सत्त्वे प्रवृद्धे तु प्रलयं याति देहभृत्।
तदोत्तमविदां लोकानमलान्प्रतिपद्यते।।14.14।।

PADACHHED

यदा, सत्त्वे, प्रवृद्धे, तु, प्रलयम्‌, याति, देह-भृत्‌,
तदा_उत्तम-विदाम्, लोकान्_अमलान्_प्रतिपद्यते ॥ १४ ॥

ANAVYA

यदा देहभृत्‌ सत्त्वे प्रवृद्धे प्रलयं याति तदा
तु उत्तमविदाम् अमलान्‌ लोकान्‌ प्रतिपद्यते।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

यदा [जब], देहभृत् [(यह) मनुष्य], सत्त्वे [सत्त्वगुण की], प्रवृद्धे [वृद्धि में], प्रलयम् [मृत्यु को], याति [प्राप्त होता है], तदा [तब],
तु [तो], उत्तमविदाम् [उत्तम कर्म करने वालों के], अमलान् [निर्मल ((दिव्य स्वर्गादि))], लोकान् [लोकों को], प्रतिपद्यते [प्राप्त होता है।],

ANUVAAD

जब (यह) मनुष्य सत्त्वगुण की वृद्धि में मृत्यु को प्राप्त होता है तब
तो उत्तम कर्म करने वालों के निर्मल ((दिव्य स्वर्गादि)) लोकों को प्राप्त होता है।

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