Chapter 14 – गुणत्रयविभागयोग Shloka-12
SHLOKA
लोभः प्रवृत्तिरारम्भः कर्मणामशमः स्पृहा।
रजस्येतानि जायन्ते विवृद्धे भरतर्षभ।।14.12।।
रजस्येतानि जायन्ते विवृद्धे भरतर्षभ।।14.12।।
PADACHHED
लोभ:, प्रवृत्ति:_आरम्भ:, कर्मणाम्_अशम:, स्पृहा,
रजसि_एतानि, जायन्ते, विवृद्धे, भरतर्षभ ॥ १२ ॥
रजसि_एतानि, जायन्ते, विवृद्धे, भरतर्षभ ॥ १२ ॥
ANAVYA
(हे) भरतर्षभ! रजसि विवृद्धे लोभ: प्रवृत्ति: कर्मणाम्
आरम्भ: अशम: (च) स्पृहा एतानि जायन्ते।
आरम्भ: अशम: (च) स्पृहा एतानि जायन्ते।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
(हे) भरतर्षभ! [हे अर्जुन!], रजसि [रजोगुण के], विवृद्धे [बढ़ने पर], लोभ: [लोभ,], प्रवृत्ति: [प्रवृत्ति, (स्वार्थ बुद्धि से)], कर्मणाम् [कर्मों का (सकाम-भाव से)],
आरम्भ: [आरम्भ,], अशम: [अशान्ति (और)], स्पृहा [((विषय-भोगों की)) लालसा], एतानि [ये सब], जायन्ते [उत्पन्न होते हैं।],
आरम्भ: [आरम्भ,], अशम: [अशान्ति (और)], स्पृहा [((विषय-भोगों की)) लालसा], एतानि [ये सब], जायन्ते [उत्पन्न होते हैं।],
ANUVAAD
हे अर्जुन! रजोगुण के बढ़ने पर लोभ, प्रवृत्ति, (स्वार्थ बुद्धि से) कर्मों का (सकाम-भाव से)
आरम्भ, अशान्ति (और) ((विषय-भोगों की)) लालसा ये सब उत्पन्न होते हैं।
आरम्भ, अशान्ति (और) ((विषय-भोगों की)) लालसा ये सब उत्पन्न होते हैं।