SHLOKA (श्लोक)
अथ चित्तं समाधातुं न शक्नोषि मयि स्थिरम्।
अभ्यासयोगेन ततो मामिच्छाप्तुं धनञ्जय।।12.9।।
अभ्यासयोगेन ततो मामिच्छाप्तुं धनञ्जय।।12.9।।
PADACHHED (पदच्छेद)
अथ, चित्तम्, समाधातुम्, न, शक्नोषि, मयि, स्थिरम्,
अभ्यास-योगेन, तत:, माम्_इच्छ_आप्तुम्, धनञ्जय ॥ ९ ॥
अभ्यास-योगेन, तत:, माम्_इच्छ_आप्तुम्, धनञ्जय ॥ ९ ॥
ANAVYA (अन्वय-हिन्दी)
अथ (त्वम्) चित्तं मयि स्थिरं समाधातुं
न शक्नोषि तत: (हे) धनञ्जय! अभ्यासयोगेन माम् आप्तुम् इच्छ।
न शक्नोषि तत: (हे) धनञ्जय! अभ्यासयोगेन माम् आप्तुम् इच्छ।
Hindi-Word-Translation (हिन्दी शब्दार्थ)
अथ (त्वम्) [यदि (तुम)], चित्तम् [मन को], मयि [मुझमें], स्थिरम् [अचल], समाधातुम् [स्थापन करने के लिये],
न शक्नोषि [समर्थ नहीं हो,], तत: [तो], (हे) धनञ्जय! [हे अर्जुन!], अभ्यासयोगेन [अभ्यासरूप योग के द्वारा], माम् [मुझको], आप्तुम् [प्राप्त होने के लिये], इच्छ [इच्छा करो।],
न शक्नोषि [समर्थ नहीं हो,], तत: [तो], (हे) धनञ्जय! [हे अर्जुन!], अभ्यासयोगेन [अभ्यासरूप योग के द्वारा], माम् [मुझको], आप्तुम् [प्राप्त होने के लिये], इच्छ [इच्छा करो।],
हिन्दी भाषांतर
यदि (तुम) मन को मुझमें अचल स्थापन करने के लिये
समर्थ नहीं हो तो हे अर्जुन! अभ्यासरूप योग के द्वारा मुझको प्राप्त होने के लिये इच्छा करो।
समर्थ नहीं हो तो हे अर्जुन! अभ्यासरूप योग के द्वारा मुझको प्राप्त होने के लिये इच्छा करो।