Chapter 12 – भक्तियोग Shloka-6
SHLOKA
ये तु सर्वाणि कर्माणि मयि संन्यस्य मत्पराः।
अनन्येनैव योगेन मां ध्यायन्त उपासते।।12.6।।
अनन्येनैव योगेन मां ध्यायन्त उपासते।।12.6।।
PADACHHED
ये, तु, सर्वाणि, कर्माणि, मयि, सन्न्यस्य, मत्परा:,
अनन्येन_एव, योगेन, माम्, ध्यायन्त:, उपासते ॥ ६ ॥
अनन्येन_एव, योगेन, माम्, ध्यायन्त:, उपासते ॥ ६ ॥
ANAVYA
तु ये मत्परा: सर्वाणि कर्माणि मयि सन्न्यस्य
माम् एव अनन्येन योगेन ध्यायन्त: उपासते ।
माम् एव अनन्येन योगेन ध्यायन्त: उपासते ।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
तु [परन्तु], ये [जो], मत्परा: [मेरे परायण रहने वाले ((भक्तजन))], सर्वाणि [सम्पूर्ण], कर्माणि [कर्मों को], मयि [मुझ में], सन्न्यस्य [अर्पण करके],
माम् [मुझ ((सगुणरूप परमेश्वर)) को], एव [ही], अनन्येन [अनन्य], योगेन [भक्तियोग से], ध्यायन्त: [निरन्तर चिन्तन करते हुए], उपासते [भजते हैं।],
माम् [मुझ ((सगुणरूप परमेश्वर)) को], एव [ही], अनन्येन [अनन्य], योगेन [भक्तियोग से], ध्यायन्त: [निरन्तर चिन्तन करते हुए], उपासते [भजते हैं।],
ANUVAAD
परन्तु जो मेरे परायण रहने वाले ((भक्तजन)) सम्पूर्ण कर्मों को मुझमें अर्पण करके
मुझ ((सगुणरूप परमेश्वर)) को ही अनन्य भक्तियोग से निरन्तर चिन्तन करते हुए भजते हैं।
मुझ ((सगुणरूप परमेश्वर)) को ही अनन्य भक्तियोग से निरन्तर चिन्तन करते हुए भजते हैं।