Gita Chapter-9 Shloka-23
SHLOKA
येऽप्यन्यदेवता भक्ता यजन्ते श्रद्धयाऽन्विताः।
तेऽपि मामेव कौन्तेय यजन्त्यविधिपूर्वकम्।।9.23।।
तेऽपि मामेव कौन्तेय यजन्त्यविधिपूर्वकम्।।9.23।।
PADACHHED
ये_अपि_अन्य-देवता:, भक्ता:, यजन्ते, श्रद्धया_अन्विता:,
ते_अपि, माम्_एव, कौन्तेय, यजन्ति_अविधि-पूर्वकम् ॥ २३ ॥
ते_अपि, माम्_एव, कौन्तेय, यजन्ति_अविधि-पूर्वकम् ॥ २३ ॥
ANAVYA
(हे) कौन्तेय! अपि श्रद्धया अन्विता: ये भक्ता: अन्यदेवता: यजन्ते ते
अपि माम् एव यजन्ति (परञ्च) (तत्) अविधिपूर्वकं (वर्तते)।
अपि माम् एव यजन्ति (परञ्च) (तत्) अविधिपूर्वकं (वर्तते)।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
(हे) कौन्तेय! [हे अर्जुन!], अपि [यद्यपि], श्रद्धया [श्रद्धा से], अन्विता: [युक्त], ये [जो], भक्ता: [((सकाम)) भक्त], अन्यदेवता: [दूसरे देवताओं को], यजन्ते [पूजते हैं,], ते [वे],
अपि [भी], माम् [मुझको], एव [ही], यजन्ति [पूजते हैं,], {(परञ्च) (तत्) [किंतु उनका वह पूजन]}, अविधिपूर्वकम् (वर्तते) [अविधिपूर्वक अर्थात् अज्ञानपूर्वक है।],
अपि [भी], माम् [मुझको], एव [ही], यजन्ति [पूजते हैं,], {(परञ्च) (तत्) [किंतु उनका वह पूजन]}, अविधिपूर्वकम् (वर्तते) [अविधिपूर्वक अर्थात् अज्ञानपूर्वक है।],
ANUVAAD
हे अर्जुन! यद्यपि श्रद्धा से युक्त जो ((सकाम)) भक्त दूसरे देवताओं को पूजते हैं, वे
भी मुझको ही पूजते हैं, (किंतु) उनका वह पूजन) अविधिपूर्वक अर्थात् अज्ञानपूर्वक है।
भी मुझको ही पूजते हैं, (किंतु) उनका वह पूजन) अविधिपूर्वक अर्थात् अज्ञानपूर्वक है।