Gita Chapter-9 Shloka-15
SHLOKA
ज्ञानयज्ञेन चाप्यन्ये यजन्तो मामुपासते।
एकत्वेन पृथक्त्वेन बहुधा विश्वतोमुखम्।।9.15।।
एकत्वेन पृथक्त्वेन बहुधा विश्वतोमुखम्।।9.15।।
PADACHHED
ज्ञान-यज्ञेन, च_अपि_अन्ये, यजन्त:, माम्_उपासते,
एकत्वेन, पृथक्त्वेन, बहुधा, विश्वतो-मुखम् ॥ १५ ॥
एकत्वेन, पृथक्त्वेन, बहुधा, विश्वतो-मुखम् ॥ १५ ॥
ANAVYA
अन्ये मां ज्ञानयज्ञेन एकत्वेन यजन्त: अपि (उपासते)
च बहुधा विश्वतोमुखं पृथक्त्वेन उपासते।
च बहुधा विश्वतोमुखं पृथक्त्वेन उपासते।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
अन्ये [दूसरे ((ज्ञानयोगी))], माम् [मुझ ((निर्गुण-निराकार ब्रह्म का))], ज्ञानयज्ञेन [ज्ञानयज्ञ के द्वारा], एकत्वेन [अभिन्न-भाव से], यजन्त: [पूजन करते हुए], अपि [भी ((मेरी))], {(उपासते) [उपासना करते हैं]},
च [और ((दूसरे मनुष्य))], बहुधा [बहुत प्रकार से स्थित], विश्वतोमुखम् [मुझ विराट् स्वरूप परमेश्वर की], पृथक्त्वेन [पृथक् -भाव से], उपासते [उपासना करते हैं।],
च [और ((दूसरे मनुष्य))], बहुधा [बहुत प्रकार से स्थित], विश्वतोमुखम् [मुझ विराट् स्वरूप परमेश्वर की], पृथक्त्वेन [पृथक् -भाव से], उपासते [उपासना करते हैं।],
ANUVAAD
दूसरे ((ज्ञानयोगी)) मुझ ((निर्गुण-निराकार ब्रह्म का)) ज्ञानयज्ञ के द्वारा अभिन्न-भाव से पूजन करते हुए भी ((मेरी)) (उपासना करते हैं)
और ((दूसरे मनुष्य)) बहुत प्रकार से स्थित मुझ विराट् स्वरुप परमेश्वर की पृथक्-भाव से उपासना करते हैं।
और ((दूसरे मनुष्य)) बहुत प्रकार से स्थित मुझ विराट् स्वरुप परमेश्वर की पृथक्-भाव से उपासना करते हैं।