SHLOKA
महात्मानस्तु मां पार्थ दैवीं प्रकृतिमाश्रिताः।
भजन्त्यनन्यमनसो ज्ञात्वा भूतादिमव्ययम्।।9.13।।
भजन्त्यनन्यमनसो ज्ञात्वा भूतादिमव्ययम्।।9.13।।
PADACHHED
महात्मान:_तु, माम्, पार्थ, दैवीम्, प्रकृतिम्_आश्रिता:,
भजन्ति_अनन्य-मनस:, ज्ञात्वा, भूतादिम्_अव्ययम् ॥ १३ ॥
भजन्ति_अनन्य-मनस:, ज्ञात्वा, भूतादिम्_अव्ययम् ॥ १३ ॥
ANAVYA
तु (हे) पार्थ! दैवीं प्रकृतिम् आश्रिता: महात्मान: मां
भूतादिम् अव्ययं (च) ज्ञात्वा अनन्यमनस: भजन्ति।
भूतादिम् अव्ययं (च) ज्ञात्वा अनन्यमनस: भजन्ति।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
तु [परन्तु], (हे) पार्थ! [हे कुन्तीपुत्र!], दैवीम् [दैवी], प्रकृतिम् [प्रकृति के], आश्रिता: [आश्रित], महात्मान: [महात्मा लोग], माम् [मुझको],
भूतादिम् [सब भूतों का सनातन कारण], अव्ययम् (च) [(और) नाशरहित अक्षरस्वरूप], ज्ञात्वा [जानकर], अनन्यमनस: [अनन्य मन से युक्त ((होकर))], भजन्ति [निरन्तर भजते हैं।],
भूतादिम् [सब भूतों का सनातन कारण], अव्ययम् (च) [(और) नाशरहित अक्षरस्वरूप], ज्ञात्वा [जानकर], अनन्यमनस: [अनन्य मन से युक्त ((होकर))], भजन्ति [निरन्तर भजते हैं।],
ANUVAAD
परन्तु हे कुन्तीपुत्र! दैवी प्रकृति के आश्रित महात्मा लोग मुझको
सब भूतों का सनातन कारण (और) नाशरहित अक्षरस्वरूप जानकर अनन्य मन से युक्त ((होकर)) निरन्तर भजते हैं।
सब भूतों का सनातन कारण (और) नाशरहित अक्षरस्वरूप जानकर अनन्य मन से युक्त ((होकर)) निरन्तर भजते हैं।