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Chapter 8 – तारकब्रह्मयोग/अक्षरब्रह्मयोग Shloka-8

Chapter-8_1.8

SHLOKA

अभ्यासयोगयुक्तेन चेतसा नान्यगामिना।
परमं पुरुषं दिव्यं याति पार्थानुचिन्तयन्।।8.8।।

PADACHHED

अभ्यास-योग-युक्तेन, चेतसा, नान्य-गामिना,
परमम्‌, पुरुषम्‌, दिव्यम्‌, याति, पार्थ_अनुचिन्तयन्‌ ॥ ८ ॥

ANAVYA

(हे) पार्थ! अभ्यासयोगयुक्तेन नान्यगामिना चेतसा
अनुचिन्तयन्‌ (जनः) परमं दिव्यं पुरुषं याति।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

(हे) पार्थ! [हे पार्थ! ((यह नियम है कि))], अभ्यासयोगयुक्तेन [((परमेश्वर के ध्यान के)) अभ्यासरूप योग से युक्त], नान्यगामिना [दूसरी ओर न जाने वाले], चेतसा [चित्त से],
अनुचिन्तयन् [निरन्तर चिन्तन करता हुआ], {(जनः) [मनुष्य]}, परमम् [परम ((प्रकाशस्वरूप))], दिव्यम् [दिव्य], पुरुषम् [पुरुष को अर्थात् परमेश्वर को ((ही))], याति [प्राप्त होता है।],

ANUVAAD

हे पार्थ! ((यह नियम है कि)) ((परमेश्वर के ध्यान के)) अभ्यासरूप योग से युक्त दूसरी ओर न जाने वाले चित्त से
निरन्तर चिन्तन करता हुआ (मनुष्य) परम ((प्रकाशस्वरूप)) दिव्य पुरुष को अर्थात्‌ परमेश्वर को ((ही)) प्राप्त होता है।

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