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Chapter 8 – तारकब्रह्मयोग/अक्षरब्रह्मयोग Shloka-6

Chapter-8_1.6

SHLOKA

यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम्।
तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावितः।।8.6।।

PADACHHED

यम्, यम्‌, वा, अपि, स्मरन्_भावम्‌, त्यजति_अन्ते, कलेवरम्‌,
तम्, तम्_एव_एति, कौन्तेय, सदा, तद्भाव-भावित: ॥ ६ ॥

ANAVYA

(हे) कौन्तेय! (अयं जनः) अन्ते यं यं वा अपि भावं स्मरन् कलेवरं
त्यजति तं तम् एव एति, (हि) (सः) सदा तद्भावभावित:।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

(हे) कौन्तेय! [हे कुन्तीपुत्र (अर्जुन!)], {(अयं जनः) [यह मनुष्य]}, अन्ते [अन्तकाल में], यम् यम् [जिस-जिस], वा अपि [भी], भावम् [भाव को], स्मरन् [स्मरण करता हुआ], कलेवरम् [शरीर का],
त्यजति [त्याग करता है,], तम् तम् [उस-उस को], एव [ही], एति [प्राप्त होता है;], {(हि) [क्योंकि]}, {(सः) [ वह]}, सदा [सदा], तद्भावभावित: [उसी भाव से भावित ((प्रेरित)) रहा है।],

ANUVAAD

हे कुन्तीपुत्र (अर्जुन!) (यह मनुष्य) अन्तकाल में जिस-जिस भी भाव को स्मरण करता हुआ शरीर का
त्याग करता है, उस-उस को ही प्राप्त होता है; (क्योंकि) (वह) सदा उसी भाव से भावित ((प्रेरित)) रहा है।

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