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Chapter 8 – तारकब्रह्मयोग/अक्षरब्रह्मयोग Shloka-26

Chapter-8_1.26

SHLOKA

शुक्लकृष्णे गती ह्येते जगतः शाश्वते मते।
एकया यात्यनावृत्तिमन्ययाऽऽवर्तते पुनः।।8.26।।

PADACHHED

शुक्ल-कृष्णे, गती, हि_एते, जगत:, शाश्वते, मते,
एकया, याति_अनावृत्तिम्_अन्यया_आवर्तते पुन: ॥ २६ ॥

ANAVYA

हि जगत: एते शुक्लकृष्णे गती शाश्वते मते। एकया (गतः)
अनावृत्तिं याति (च) अन्यया (गतः) पुनः आवर्तते।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

हि [क्योंकि], जगत: [जगत् के], एते [ये ((दो प्रकार के))-], शुक्लकृष्णे [शुक्ल और कृष्ण अर्थात् देवयान और पितृयान], गती [मार्ग], शाश्वते [सनातन], मते [माने गये हैं ((इनमें))], एकया [एक के द्वारा], {(गतः) [गया हुआ]},
अनावृत्तिम् [जिससे वापस नहीं लौटना पड़ता ((उस परमगति)) को], याति [प्राप्त होता है], {(च) [और]}, अन्यया (गतः) [दूसरे के द्वारा (गया हुआ)], पुनः [फिर], आवर्तते [वापस आता है अर्थात् जन्म-मृत्यु को प्राप्त होता है।],

ANUVAAD

क्योंकि जगत् के ये ((दो प्रकार के)) - शुक्ल और कृष्ण अर्थात् देवयान और पितृयान मार्ग सनातन माने गये हैं ((इनमें)) एक के द्वारा (गया हुआ)
जिससे वापस नहीं लौटना पड़ता ((उस परमगति)) को प्राप्त होता है (और) दूसरे के द्वारा (गया हुआ) फिर वापस आता है अर्थात् जन्म-मृत्यु को प्राप्त होता है।

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