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Chapter 8 – तारकब्रह्मयोग/अक्षरब्रह्मयोग Shloka-2

Chapter-8_1.2

SHLOKA

अधियज्ञः कथं कोऽत्र देहेऽस्मिन्मधुसूदन।
प्रयाणकाले च कथं ज्ञेयोऽसि नियतात्मभिः।।8.2।।

PADACHHED

अधियज्ञ:, कथम्‌, क:_अत्र, देहे_अस्मिन्_मधुसूदन,
प्रयाण-काले, च, कथम्‌, ज्ञेय:_असि, नियतात्मभि: ॥ २ ॥

ANAVYA

(हे) मधुसूदन! अत्र अधियज्ञ: क:, (सः च) अस्मिन्‌ देहे कथं (अस्ति)
च नियतात्मभि: प्रयाणकाले (त्वम्) कथं ज्ञेय: असि।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

(हे) मधुसूदन! [हे मधुसूदन!], अत्र [यहाँ], अधियज्ञ: [अधियज्ञ], क: [कौन है?];, {(सः च) [और वह]}, अस्मिन् [इस], देहे [शरीर में], कथम् (अस्ति) [कैसे है?],
च [तथा], नियतात्मभि: [युक्त चित्त वाले पुरुषों द्वारा], प्रयाणकाले [अन्त समय में], {(त्वम्) [आप]}, कथम् [किस प्रकार], ज्ञेय: [जानने में आते], असि [हैं?]',

ANUVAAD

हे मधुसूदन! यहाँ अधियज्ञ कौन है? (और वह) इस शरीर में कैसे है?
तथा युक्त चित्त वाले पुरुषों द्वारा अन्त समय में (आप) किस प्रकार जानने में आते हैं?

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