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Chapter 8 – तारकब्रह्मयोग/अक्षरब्रह्मयोग Shloka-12-13

Chapter-8_1.12.13

SHLOKA

सर्वद्वाराणि संयम्य मनो हृदि निरुध्य च।
मूर्ध्न्याधायात्मनः प्राणमास्थितो योगधारणाम्।।8.12।।
ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन्।
यः प्रयाति त्यजन्देहं स याति परमां गतिम्।।8.13।।

PADACHHED

सर्व-द्वाराणि, संयम्य, मन:, हृदि, निरुध्य, च,
मूध्र्नि_आधाय_आत्मन:, प्राणम्_आस्थित:, योग-धारणाम्‌ ॥ १२ ॥
ओम्_इति_एकाक्षरम्‌, ब्रह्म, व्याहरन्_माम्_अनुस्मरन्‌,
य:, प्रयाति, त्यजन्_देहम्, स:, याति, परमाम्‌, गतिम्‌ ॥ १३ ॥

ANAVYA

सर्वद्वाराणि संयम्य च मन: हृदि निरुध्य, प्राणं मूध्र्नि आधाय, आत्मन: योगधारणाम्‌ आस्थित:
य: (पुुरुषः) ओम् इति एकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन् माम् अनुस्मरन् देहं त्यजन्‌ प्रयाति, स: (पुरुषः) परमां गतिं याति।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

सर्वद्वाराणि [सब ((इन्द्रियों)) के द्वारों को], संयम्य [रोककर], च [तथा], मन: [मन को], हृदि [हृृदय स्थान में], निरुध्य [स्थिर करके, ((फिर उस जीते हुए मन के द्वारा))], प्राणम् [प्राण को], मूध्र्नि [मस्तक में], आधाय [स्थापित करके], आत्मन: [परमात्मा सम्बन्धी], योगधारणाम् [योग धारणा में], आस्थित: [स्थित होकर],
य: (पुरुषः) [जो (पुरूष)], "ओम् [ॐ]", इति [इस], एकाक्षरम् [एक अक्षररूप], ब्रह्म [ब्रह्म का], व्याहरन् [उच्चारण करता हुआ ((और उसके अर्थस्वरूप))], माम् [मुझ ((निर्गुण ब्रह्म)) का], अनुस्मरन् [चिन्तन करता हुआ], देहम् [शरीर को], त्यजन् [त्यागकर], प्रयाति [जाता है,], स: (पुरुषः) [वह (पुरुष)], परमाम् , गतिम् [परमगति को], याति [प्राप्त होता है।]

ANUVAAD

सब ((इन्द्रियों)) के द्वारों को रोक कर तथा मन को हृदय स्थान में स्थिर करके, ((फिर उस जीते हुए मन के द्वारा)) प्राण को मस्तक में स्थापित करके, परमात्मा सम्बन्धी योग धारणा में स्थित होकर
जो (पुरूष) ॐ इस एक अक्षररूप ब्रह्म का उच्चारण करता हुआ ((और उसके अर्थस्वरूप)) मुझ ((निर्गुण ब्रह्म)) का चिन्तन करता हुआ शरीर को त्यागकर जाता है, वह (पुरुष) परमगति को प्राप्त होता है।

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