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Chapter 7 – ज्ञानविज्ञानयोग Shloka-8

Chapter-7_7.8

SHLOKA

रसोऽहमप्सु कौन्तेय प्रभास्मि शशिसूर्ययोः।
प्रणवः सर्ववेदेषु शब्दः खे पौरुषं नृषु।।7.8।।

PADACHHED

रस:_अहम्_अप्सु, कौन्तेय, प्रभा_अस्मि, शशि-सूर्ययो:,
प्रणव:, सर्व-वेदेषु, शब्द:, खे, पौरुषम्, नृषु ॥ ८ ॥

ANAVYA

(हे) कौन्तेय! अहम् अप्सु रस: (अस्मि) शशिसूर्ययो: प्रभा
अस्मि, सर्ववेदेषु प्रणव: (अस्मि), खे शब्द: (च) नृषु पौरुषम् (अस्मि)।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

(हे) कौन्तेय! [हे अर्जुन!], अहम् [मै], अप्सु [जल में], रस: (अस्मि) [रस हूँ,], शशिसूर्ययो: [चन्द्रमा और सूर्य में], प्रभा [प्रकाश],
अस्मि [हूँ,], सर्ववेदेषु [सम्पूर्ण वेदों में], प्रणव: (अस्मि) [ओंकार हूँ,], खे [आकाश में], शब्द: (च) [शब्द (और)], नृषु [पुरुषों में], पौरुषम् (अस्मि) [पुरुषत्व हूँ।],

ANUVAAD

हे अर्जुन! मै जल में रस हूँ, चन्द्रमा और सूर्य में प्रकाश
हूँ, सम्पूर्ण वेदों में ओंकार हूँ, आकाश में शब्द (और) पुरुषों में पुरुषत्व हूँ।

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