Chapter 7 – ज्ञानविज्ञानयोग Shloka-27
SHLOKA
इच्छाद्वेषसमुत्थेन द्वन्द्वमोहेन भारत।
सर्वभूतानि सम्मोहं सर्गे यान्ति परन्तप।।7.27।।
सर्वभूतानि सम्मोहं सर्गे यान्ति परन्तप।।7.27।।
PADACHHED
इच्छा-द्वेष-समुत्थेन, द्वन्द्व-मोहेन, भारत,
सर्व-भूतानि, सम्मोहम्, सर्गे, यान्ति, परन्तप ॥ २७ ॥
सर्व-भूतानि, सम्मोहम्, सर्गे, यान्ति, परन्तप ॥ २७ ॥
ANAVYA
(हे) भारत परन्तप! सर्गे इच्छाद्वेषसमुत्थेन
द्वन्द्वमोहेन सर्वभूतानि सम्मोहं यान्ति।
द्वन्द्वमोहेन सर्वभूतानि सम्मोहं यान्ति।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
(हे) भारत [हे भरतवंशी], परन्तप! [अर्जुन!], सर्गे [संसार में], इच्छाद्वेषसमुत्थेन [इच्छा और द्वेष से उत्पन्न],
द्वन्द्वमोहेन [((सुख-दुःख आदि)) द्वन्द्वरूप मोह से], सर्वभूतानि [सम्पूर्ण प्राणी], सम्मोहम् [अत्यन्त अज्ञता को], यान्ति [प्राप्त हो रहे हैं।],
द्वन्द्वमोहेन [((सुख-दुःख आदि)) द्वन्द्वरूप मोह से], सर्वभूतानि [सम्पूर्ण प्राणी], सम्मोहम् [अत्यन्त अज्ञता को], यान्ति [प्राप्त हो रहे हैं।],
ANUVAAD
हे भरतवंशी अर्जुन! संसार में इच्छा और द्वेष से उत्पन्न
((सुख-दुःख आदि)) द्वन्द्वरूप मोह से सम्पूर्ण प्राणी अत्यन्त अज्ञता को प्राप्त हो रहे हैं।
((सुख-दुःख आदि)) द्वन्द्वरूप मोह से सम्पूर्ण प्राणी अत्यन्त अज्ञता को प्राप्त हो रहे हैं।