Chapter 7 – ज्ञानविज्ञानयोग Shloka-22
SHLOKA
स तया श्रद्धया युक्तस्तस्या राधनमीहते।
लभते च ततः कामान्मयैव विहितान्हि तान्।।7.22।।
लभते च ततः कामान्मयैव विहितान्हि तान्।।7.22।।
PADACHHED
स:, तया, श्रद्धया, युक्त:_तस्याः, राधनम्_ईहते,
लभते, च, तत:, कामान्_मया_एव, विहितान्, हि, तान् ॥ २२ ॥
लभते, च, तत:, कामान्_मया_एव, विहितान्, हि, तान् ॥ २२ ॥
ANAVYA
स: (पुरुषः) तया श्रद्धया युक्त: तस्याः (देवतायाः) राधनम् ईहते च
तत: मया एव विहितान् तान् कामान् हि लभते।
तत: मया एव विहितान् तान् कामान् हि लभते।
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स: (पुरुषः) [वह (पुरुष)], तया [उस], श्रद्धया [श्रद्धा से], युक्त: [युक्त होकर], तस्याः (देवतायाः) [उस (देवता) का], राधनम् [पूजन], ईहते [करता है], च [और],
तत: (देवतायाः) [उस ((देवता)) से], मया [मेरे द्वारा], एव [ही], विहितान् [विधान किये हुए], तान् [उन], कामान् [इच्छित भोगों को], हि [नि:सन्देह], लभते [प्राप्त करता है।],
तत: (देवतायाः) [उस ((देवता)) से], मया [मेरे द्वारा], एव [ही], विहितान् [विधान किये हुए], तान् [उन], कामान् [इच्छित भोगों को], हि [नि:सन्देह], लभते [प्राप्त करता है।],
ANUVAAD
वह (पुरुष) उस श्रद्धा से युक्त होकर उस (देवता) का पूजन करता है और
उस ((देवता)) से मेरे द्वारा ही विधान किये हुए उन इच्छित भोगों को नि:सन्देह प्राप्त करता है।
उस ((देवता)) से मेरे द्वारा ही विधान किये हुए उन इच्छित भोगों को नि:सन्देह प्राप्त करता है।