Chapter 7 – ज्ञानविज्ञानयोग Shloka-14
SHLOKA
दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया।
मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते।।7.14।।
मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते।।7.14।।
PADACHHED
दैवी, हि_एषा, गुणमयी, मम, माया, दुरत्यया,
माम्_एव, ये, प्रपद्यन्ते, मायाम्_एताम्, तरन्ति, ते ॥ १४ ॥
माम्_एव, ये, प्रपद्यन्ते, मायाम्_एताम्, तरन्ति, ते ॥ १४ ॥
ANAVYA
हि एषा दैवी गुणमयी मम माया दुरत्यया (वर्तते), (परञ्च) ये (जनाः)
माम् एव प्रपद्यन्ते ते एतां मायां तरन्ति।
माम् एव प्रपद्यन्ते ते एतां मायां तरन्ति।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
हि [क्योंकि], एषा [यह], दैवी [अलौकिक अर्थात् अति अद्भुत], गुणमयी [त्रिगुणमयी], मम [मेरी], माया [माया], दुरत्यया [बड़ी दुस्तर ((कठिनाई से पार करने योग्य)) है;], {(परञ्च) [परन्तु]}, ये (जनाः) [जो पुरुष ((केवल)))],
माम् [मुझको], एव [ही ((निरन्तर))], प्रपद्यन्ते [भजते हैं,], ते [वे], एताम् [इस], मायाम् [माया का], तरन्ति [उल्लंघन कर जाते हैं अर्थात् संसार से तर जाते हैं।],
माम् [मुझको], एव [ही ((निरन्तर))], प्रपद्यन्ते [भजते हैं,], ते [वे], एताम् [इस], मायाम् [माया का], तरन्ति [उल्लंघन कर जाते हैं अर्थात् संसार से तर जाते हैं।],
ANUVAAD
क्योंकि यह अलौकिक अर्थात् अति अद्भुत त्रिगुणमयी मेरी माया बड़ी दुस्तर ((कठिनाई से पार करने योग्य)) है; (परन्तु) जो (पुरुष) ((केवल))
मुझको ही ((निरन्तर)) भजते हैं, वे इस माया का उल्लंघन कर जाते हैं अर्थात् संसार से तर जाते हैं।
मुझको ही ((निरन्तर)) भजते हैं, वे इस माया का उल्लंघन कर जाते हैं अर्थात् संसार से तर जाते हैं।