Chapter 6 – ध्यानयोग/आत्मसंयमयोग Shloka-47

Chapter-6_6.47

SHLOKA (श्लोक)

योगिनामपि सर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना।
श्रद्धावान्भजते यो मां स मे युक्ततमो मतः।।6.47।।

PADACHHED (पदच्छेद)

योगिनाम्_अपि, सर्वेषाम्‌, मद्गतेन_अन्तरात्मना,
श्रद्धावान्_भजते, य:, माम्‌, स:, मे, युक्ततम:, मत: ॥ ४७ ॥

ANAVYA (अन्वय-हिन्दी)

सर्वेषां योगिनाम् अपि य: श्रद्वावान् (योगी) मद्गतेन अन्तरात्मना
मां भजते, स: (योगी) मे युक्ततम: मत:।

Hindi-Word-Translation (हिन्दी शब्दार्थ)

सर्वेषाम् [सम्पूर्ण], योगिनाम् [योगियों मे], अपि [भी], य: [जो], श्रद्वावान् (योगी) [श्रद्धावान् (योगी)], मद्गतेन [मुझमें लगे हुए], अन्तरात्मना [अन्तरात्मा से],
माम् [मुझको ((निरन्तर))], भजते [भजता है,], स: (योगी) [वह (योगी)], मे [मुझे], युक्ततम: [परमश्रेष्ठ], मत: [मान्य है।]

हिन्दी भाषांतर

सम्पूर्ण योगियों मे भी जो श्रद्धावान् (योगी) मुझमें लगे हुए अन्तरात्मा से
मुझको ((निरन्तर)) भजता है, वह (योगी) मुझे परमश्रेष्ठ मान्य है।

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