Gita Chapter-6 Shloka-33
SHLOKA
अर्जुन उवाच -
योऽयं योगस्त्वया प्रोक्तः साम्येन मधुसूदन।
एतस्याहं न पश्यामि चञ्चलत्वात्स्थितिं स्थिराम्।।6.33।।
योऽयं योगस्त्वया प्रोक्तः साम्येन मधुसूदन।
एतस्याहं न पश्यामि चञ्चलत्वात्स्थितिं स्थिराम्।।6.33।।
PADACHHED
अर्जुन उवाच -
य:_अयम्, योग:_त्वया, प्रोक्त:, साम्येन, मधुसूदन,
एतस्य_अहम्, न, पश्यामि, चञ्चलत्वात्_स्थितिम्, स्थिराम् ॥ ३३ ॥
य:_अयम्, योग:_त्वया, प्रोक्त:, साम्येन, मधुसूदन,
एतस्य_अहम्, न, पश्यामि, चञ्चलत्वात्_स्थितिम्, स्थिराम् ॥ ३३ ॥
ANAVYA
अर्जुन उवाच -
(हे) मधुसूदन! य: अयं योग: त्वया साम्येन प्रोक्त:
(मनसः) चञ्चलत्वात् अहम् एतस्य स्थिरां स्थितिं न पश्यामि।
(हे) मधुसूदन! य: अयं योग: त्वया साम्येन प्रोक्त:
(मनसः) चञ्चलत्वात् अहम् एतस्य स्थिरां स्थितिं न पश्यामि।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
अर्जुन उवाच -[अर्जुन ने कहा -], (हे) मधुसूदन! [हे मधुसूदन!], य: [जो], अयम् [यह], योग: [योग], त्वया [आपने], साम्येन [समभाव से], प्रोक्त: [कहा है],
{(मनसः) [मन के]}, चञ्चलत्वात् [चंचल होने से], अहम् [मैं], एतस्य [इसकी], स्थिराम् [नित्य], स्थितिम् [स्थिति को], न [नहीं], पश्यामि [देखता हूँ।],
{(मनसः) [मन के]}, चञ्चलत्वात् [चंचल होने से], अहम् [मैं], एतस्य [इसकी], स्थिराम् [नित्य], स्थितिम् [स्थिति को], न [नहीं], पश्यामि [देखता हूँ।],
ANUVAAD
अर्जुन ने कहा - हे मधुसूदन! जो यह योग आपने समभाव से कहा है,
(मन के) चंचल होने से मैं इसकी नित्य स्थिति को नहीं देखता हूँ।
(मन के) चंचल होने से मैं इसकी नित्य स्थिति को नहीं देखता हूँ।