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Chapter 5 – कर्मसन्न्यासयोग Shloka-23

Chapter-5_5.23

SHLOKA

शक्नोतीहैव यः सोढुं प्राक्शरीरविमोक्षणात्।
कामक्रोधोद्भवं वेगं स युक्तः स सुखी नरः।।5.23।।

PADACHHED

शक्‍नोति_इह_एव, यः, सोढुम्‌, प्राक्_शरीर-विमोक्षणात्‌,
काम-क्रोधोद्धवम्‌, वेगम्, स:, युक्त:, स:, सुखी, नर: ॥ २३ ॥

ANAVYA

यः इह शरीरविमोक्षणात्‌ प्राक् एव कामक्रोधोद्धवं
वेगं सोढुम्‌ शक्‍नोति स: नर: युक्त: स: (च) सुखी (वर्तते)।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

यः [जो ((साधक))], इह [इस ((मनुष्य शरीर)) में,], शरीरविमोक्षणात् [शरीर का नाश होने से], प्राक् [पहले-पहले], एव [ही], कामक्रोधोद्धवम् [काम-क्रोध से उत्पन्न होने वाले],
वेगम् [वेग को], सोढुम् [सहन करने में], शक्नोति [समर्थ हो जाता है,], स: [वही], नर: [पुरुष], युक्त: [योगी है , स: (च) [(और)] वही], सुखी (वर्तते) [सुखी है।],

ANUVAAD

जो ((साधक)) इस ((मनुष्य शरीर)) में शरीर का नाश होने से पहले-पहले ही काम-क्रोध से उत्पन्न होने वाले
वेग को सहन करने में समर्थ हो जाता है, वही पुरुष योगी है (और) वही सुखी है।

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