SHLOKA (श्लोक)
सर्वकर्माणि मनसा संन्यस्यास्ते सुखं वशी।
नवद्वारे पुरे देही नैव कुर्वन्न कारयन्।।5.13।।
नवद्वारे पुरे देही नैव कुर्वन्न कारयन्।।5.13।।
PADACHHED (पदच्छेद)
सर्व-कर्माणि, मनसा, सन्न्यस्य_आस्ते, सुखम्, वशी,
नव-द्वारे, पुरे, देही, न_एव, कुर्वन्_न, कारयन् ॥ १३ ॥
नव-द्वारे, पुरे, देही, न_एव, कुर्वन्_न, कारयन् ॥ १३ ॥
ANAVYA (अन्वय-हिन्दी)
वशी देही न कुर्वन् न कारयन् (च) एव
नवद्वारे पुरे सर्वकर्माणि मनसा सन्न्यस्य सुखम् आस्ते।
नवद्वारे पुरे सर्वकर्माणि मनसा सन्न्यस्य सुखम् आस्ते।
Hindi-Word-Translation (हिन्दी शब्दार्थ)
वशी [अन्तःकरण जिसके वश में है ऐसा सांख्ययोग का आचरण करने वाला], देही [पुरुष], न [न], कुर्वन् [करता हुआ], न [न], कारयन् (च) [(और) करवाता हुआ], एव [ही],
नवद्वारे [नवद्वारों वाले ((शरीररूप))], पुरे [घर में], सर्वकर्माणि [सभी कर्मों को], मनसा [मन से], सन्न्यस्य [त्यागकर], सुखम् [आनन्दपूर्वक ((सच्चिदानन्दघन परमात्मा के स्वरूप में))], आस्ते [स्थित रहता है।],
नवद्वारे [नवद्वारों वाले ((शरीररूप))], पुरे [घर में], सर्वकर्माणि [सभी कर्मों को], मनसा [मन से], सन्न्यस्य [त्यागकर], सुखम् [आनन्दपूर्वक ((सच्चिदानन्दघन परमात्मा के स्वरूप में))], आस्ते [स्थित रहता है।],
हिन्दी भाषांतर
अन्तःकरण जिसके वश में है ऐसा सांख्ययोग का आचरण करने वाला पुरुष न करता हुआ (और) न करवाता हुआ ही
नवद्वारों वाले ((शरीररूप)) घर में सभी कर्मों को मन से त्यागकर आनन्दपूर्वक ((सच्चिदानन्दघन परमात्मा के स्वरूप में)) स्थित रहता है।
नवद्वारों वाले ((शरीररूप)) घर में सभी कर्मों को मन से त्यागकर आनन्दपूर्वक ((सच्चिदानन्दघन परमात्मा के स्वरूप में)) स्थित रहता है।