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Chapter 5 – कर्मसन्न्यासयोग Shloka-1

Chapter-5_5.1

SHLOKA

अर्जुन उवाच -
संन्यासं कर्मणां कृष्ण पुनर्योगं च शंससि।
यच्छ्रेय एतयोरेकं तन्मे ब्रूहि सुनिश्चितम्।।5.1।।

PADACHHED

अर्जुन उवाच -
सन्न्यासम्‌, कर्मणाम्‌, कृष्ण, पुनः_योगम्‌, च, शंससि,
यत्_श्रेय:, एतयो:_एकम्‌, तत्_मे, ब्रूहि_सुनिश्चितम्‌ ॥ १ ॥

ANAVYA

अर्जुन उवाच -
(हे) कृष्ण! (त्वम्) कर्मणां सन्न्यासं च पुनः योगं शंससि (अतः) एतयो:
यत्‌ एकं मे सुनिश्चितं श्रेय: (स्यात्) तत्‌ ब्रूहि।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

अर्जुन उवाच - अर्जुन ने कहा, (हे) कृष्ण! (त्वं) [हे कृष्ण! (आप)], कर्मणाम् [कर्मों के], सन्न्यासम् [संन्यास की], च [और], पुनः [फिर], योगम् [कर्मयोग की], शंससि [प्रशंसा करते हैं।], { (अतः) [इसलिये]}, एतयो: [इन दोनों में से], यत् [जो], एकम् [एक], मे [मेरे लिये], सुनिश्चितम् [भलीभाँति निश्चित], श्रेय: (स्यात्) [कल्याणकारक साधन (हो),], तत् [उसको], ब्रूहि [कहिये।],

ANUVAAD

अर्जुन ने कहा - हे कृष्ण! (आप) कर्मों के संन्यास की और फिर कर्मयोग की प्रशंसा करते हैं। (इसलिये) इन दोनों में से
जो एक मेरे लिये भलीभाँति निश्चित कल्याणकारक साधन (हो), उसको कहिये।

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