SHLOKA
अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति।
नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मनः।।4.40।।
नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मनः।।4.40।।
PADACHHED
अज्ञ:_च_अश्रद्दधान:_च, संशयात्मा, विनश्यति,
न_अयम्, लोक:_अस्ति, न, पर:, न, सुखम्, संशयात्मन: ॥ ४० ॥
न_अयम्, लोक:_अस्ति, न, पर:, न, सुखम्, संशयात्मन: ॥ ४० ॥
ANAVYA
अज्ञ: च अश्रद्दधान: संशयात्मा (पुरुषः) (परमार्थतः) विनश्यति (एवम्) संशयात्मन:
न अयं लोक: अस्ति न पर: (अस्ति) च न सुखम् (एव अस्ति)।
न अयं लोक: अस्ति न पर: (अस्ति) च न सुखम् (एव अस्ति)।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
अज्ञ: [विवेकहीन], च [और], अश्रद्दधान: [श्रद्धारहित], संशयात्मा (पुरुषः) [संशययुक्त (मनुष्य)], {(परमार्थतः) [परमार्थ से]}, विनश्यति [अवश्य भ्रष्ट हो जाता है], {(एवम्) [ऐसे]], संशयात्मन: [संशययुक्त ((मनुष्य)) के लिये], न [न], अयम् [यह], लोक: [लोक], अस्ति [है,], न [न], पर: (अस्ति) [परलोक (है)], च [और], न [न], सुखम् (एव अस्ति) [सुख (ही है)।]
ANUVAAD
विवेकहीन और श्रद्धारहित संशययुक्त (मनुष्य) (परमार्थ से) अवश्य भ्रष्ट हो जाता है (ऐसे) संशययुक्त ((मनुष्य)) के लिये
न यह लोक है न परलोक (है) और न सुख (ही है)।
न यह लोक है न परलोक (है) और न सुख (ही है)।