Chapter 4 – ज्ञानकर्मसन्न्यासयोग Shloka-4

Chapter-4_4.4

SHLOKA

अर्जुन उवाच -
अपरं भवतो जन्म परं जन्म विवस्वतः।
कथमेतद्विजानीयां त्वमादौ प्रोक्तवानिति।।4.4।।

PADACHHED

अर्जुन उवाच -
अपरम्, भवत:, जन्म, परम्, जन्म, विवस्वत:,
कथम_एतत्_विजानीयाम्‌, त्वम्_आदौ, प्रोक्तवान्‌ _इति ॥ ४ ॥

ANAVYA

अर्जुन उवाच -
भवतः जन्म (तु) अपरं (वर्तते), (अपि च) विवस्वत: जन्म परम् (वर्तते),
इति कथं विजानीयां (यत्) त्वम् आदौ (सूर्यं प्रति) एतत् (योगं) प्रोक्तवान्?

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अर्जुन उवाच - [अर्जुन ने कहा], भवतः [आपका], जन्म (तु) [जन्म (तो)], अपरम् (वर्तते), (अपि च) [अर्वाचीन-अभी हाल का है (और)], विवस्वत: [सूर्य का], जन्म [जन्म], परम् (वर्तते) [बहुत पुराना है अर्थात् कल्प के आदि में हो चुका था; ((तब मैं))], इति [इस बात को], कथम् [कैसे], विजानीयाम् (यत्) [समझूँ (कि)], त्वम् [आप ही ने], आदौ (सूर्यं प्रति) [((कल्प के)) आदि में ((सूर्य से))], एतत् (योगं) [यह (योग)], प्रोक्तवान् [कहा था ?],

ANUVAAD

अर्जुन ने कहा - आपका जन्म (तो) अर्वाचीन-अभी हाल का है (और) सूर्य का जन्म बहुत पुराना है अर्थात् कल्प के आदि में हो चुका था; ((तब मैं))
इस बात को कैसे समझूँ (कि) आप ही ने ((कल्प के)) आदि में ((सूर्य से)) यह (योग) कहा था ?

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