Chapter 4 – ज्ञानकर्मसन्न्यासयोग Shloka-34

Chapter-4_4.34

SHLOKA (श्लोक)

तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।
उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः।।4.34।।

PADACHHED (पदच्छेद)

तत् _विद्धि, प्रणिपातेन, परिप्रश्नेन, सेवया,
उपदेक्ष्यन्ति, ते, ज्ञानम्‌, ज्ञानिन:_तत्त्व-दर्शिन: ॥ ३४ ॥

ANAVYA (अन्वय-हिन्दी)

तत्‌ (ज्ञानं त्वं तत्त्वदर्शिनमुपसृत्य) विद्धि, (तान्) प्रणिपातेन (तस्य) सेवया (च)
परिप्रश्नेन च ते तत्त्वदर्शिन: ज्ञानिन: (त्वां तत्) ज्ञानम्‌ उपदेक्ष्यन्ति।

Hindi-Word-Translation (हिन्दी शब्दार्थ)

तत् (ज्ञानं त्वं तत्त्वदर्शिनमुपसृत्य) [उस (ज्ञान को तुम तत्त्वदर्शी ज्ञानियों के पास जाकर)], विद्धि [समझो], { (तान्) [उनको]}, प्रणिपातेन [भलीभाँति दण्डवत् प्रणाम करने से,], {(तस्य) [उनकी)], सेवया (च) [सेवा करने से (और)], परिप्रश्नेन [कपट छोड़कर सरलतापूर्वक प्रश्न करने से], ते [वे], तत्त्वदर्शिन: [परमात्मतत्त्व को भलीभाँति जानने वाले], ज्ञानिन: [ज्ञानी महात्मा], {(त्वां तत्) [तुम्हें उस], ज्ञानम् [तत्त्वज्ञान का], उपदेक्ष्यन्ति [उपदेश करेंगे।]',

हिन्दी भाषांतर

उस (ज्ञान को तुम तत्त्वदर्शी ज्ञानियों के पास जाकर) समझो, (उनको) भलीभाँति दण्डवत् प्रणाम करने से, (उनकी) सेवा करने से (और) कपट छोड़कर
सरलतापूर्वक प्रश्न करने से वे परमात्म तत्त्व को भलीभाँति जानने वाले ज्ञानी महात्मा (तुम्हें उस) तत्त्वज्ञान का उपदेश करेंगे।

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