Gita Chapter-4 Shloka-33

Chapter-4_4.33

SHLOKA

श्रेयान्द्रव्यमयाद्यज्ञाज्ज्ञानयज्ञः परन्तप।
सर्वं कर्माखिलं पार्थ ज्ञाने परिसमाप्यते।।4.33।।

PADACHHED

श्रेयान्_द्रव्यमयात्_यज्ञात्_ज्ञान-यज्ञ:, परन्तप,
सर्वम्‌, कर्म_अखिलम्‌, पार्थ, ज्ञाने, परिसमाप्यते ॥ ३३ ॥

ANAVYA

(हे) परन्तप पार्थ! द्रव्यमयात्‌ यज्ञात्‌ ज्ञानयज्ञ: श्रेयान्‌ (अस्ति) (च)
अखिलं सर्वं कर्म ज्ञाने परिसमाप्यते।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

(हे) परन्तप पार्थ! [हे परंतप अर्जुन!], द्रव्यमयात् [द्रव्यमय], यज्ञात् [यज्ञ की अपेक्षा], ज्ञानयज्ञ: [ज्ञानयज्ञ], श्रेयान् (अस्ति) (च) [अत्यन्त श्रेष्ठ है (तथा)],
अखिलम् [अखिल], सर्वम् [सम्पूर्ण], कर्म [कर्म], ज्ञाने [ज्ञान में], परिसमाप्यते [समाप्त हो जाते हैं।]',

ANUVAAD

हे परंतप अर्जुन! द्रव्यमय यज्ञ की अपेक्षा ज्ञानयज्ञ अत्यन्त श्रेष्ठ है (तथा)
अखिल सम्पूर्ण कर्म ज्ञान में समाप्त हो जाते हैं।

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