SHLOKA
एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः।
स कालेनेह महता योगो नष्टः परन्तप।।4.2।।
स कालेनेह महता योगो नष्टः परन्तप।।4.2।।
PADACHHED
एवम्, परम्परा-प्राप्तम्_इमम्, राजर्षय:, विदुः,
स:, कालेन_इह, महता, योग:, नष्ट:, परन्तप ॥२॥
स:, कालेन_इह, महता, योग:, नष्ट:, परन्तप ॥२॥
ANAVYA
(हे) परन्तप! एवं परम्पराप्राप्तम् इमं (योगं) राजर्षय: विदुः, (परञ्च) (ततः)
स: योग: महता कालेन इह नष्ट:।
स: योग: महता कालेन इह नष्ट:।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
(हे) परन्तप! [हे परन्तप ((अर्जुन!))], एवम् [इस प्रकार], परम्पराप्राप्तम् : [परम्परा से प्राप्त], इमं (योगं) [इस (योग) को], राजर्षय: [राजर्षियों ने], विदुः [जाना], {(परञ्च) (ततः) [किंतु उसके बाद]},
स: [वह], योग: [योग], महता [बहुत], कालेन [काल से], इह [इस लोक में], नष्ट: [नष्ट हो गया।],
स: [वह], योग: [योग], महता [बहुत], कालेन [काल से], इह [इस लोक में], नष्ट: [नष्ट हो गया।],
ANUVAAD
हे परन्तप ((अर्जुन))! इस प्रकार परम्परा से प्राप्त इस (योग) को राजर्षियों ने जाना, (किंतु) (उसके बाद)
वह योग बहुत काल से इस लोक में नष्ट हो गया।
वह योग बहुत काल से इस लोक में नष्ट हो गया।