Chapter 4 – ज्ञानकर्मसन्न्यासयोग Shloka-14

Chapter-4_4.14

SHLOKA

न मां कर्माणि लिम्पन्ति न मे कर्मफले स्पृहा।
इति मां योऽभिजानाति कर्मभिर्न स बध्यते।।4.14।।

PADACHHED

न, माम्‌, कर्माणि, लिम्पन्ति, न, मे, कर्म-फले, स्पृहा,
इति, माम्, य:_अभिजानाति, कर्मभि:_न, सः, बध्यते ॥ १४ ॥

ANAVYA

कर्मफले मे स्पृहा न (अस्ति), (अतः) मां कर्माणि न लिम्पन्ति इति
य: माम्‌ अभिजानाति स: कर्मभि: न बध्यते।

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कर्मफले [कर्मों के फल में], मे [मेरी], स्पृहा [कामना], न (अस्ति) [नहीं है] {(अतः) [इसलिये]}, माम् [मुझे], कर्माणि [कर्म], न लिम्पन्ति [लिप्त नहीं करते-], इति [इस प्रकार],
य: [जो], माम् [मुझे], अभिजानाति [तत्व से जान लेता है,], स: [वह], कर्मभि: [कर्मों से], न [नहीं], बध्यते [बँधता।],

ANUVAAD

कर्मों के फल में मेरी कामना नहीं है, (इसलिये) मुझे कर्म लिप्त नहीं करते- इस प्रकार
जो मुझे तत्व से जान लेता है, वह कर्मों से नहीं बँधता।

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