Chapter 4 – ज्ञानकर्मसन्न्यासयोग Shloka-11

Chapter-4_4.11

SHLOKA

ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्।
मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः।।4.11।।

PADACHHED

ये, यथा, माम्‌, प्रपद्यन्ते, तान्_तथा_एव, भजामि_अहम्‌,
मम, वर्त्म_अनुवर्तन्ते, मनुष्या:, पार्थ, सर्वश: ॥ ११ ॥

ANAVYA

(हे) पार्थ! ये (भक्ताः) मां यथा प्रपद्यन्ते अहं (अपि) तान् तथा एव
भजामि (हि) मनुष्या: सर्वश: मम (एव) वर्त्म अनुवर्तन्ते।

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(हे) पार्थ [हे अर्जुन!], ये (भक्ताः) [जो (भक्त)], माम् [मुझे], यथा [जिस प्रकार], प्रपद्यन्ते [भजते हैं,], अहम् (अपि) [मैं (भी)], तान् [उनको], तथा एव [उसी प्रकार ],
भजामि [भजता हूँ; ], {(हि)[क्योंकि]}, मनुष्या: [सभी मनुष्य], सर्वश: [सब प्रकार से], मम (एव) [मेरे (ही)], वर्त्म [मार्ग का], अनुवर्तन्ते [अनुसरण करते हैं।],

ANUVAAD

हे अर्जुन! जो (भक्त) मुझे जिस प्रकार भजते हैं, मैं (भी) उनको उसी प्रकार
भजता हूँ; (क्योंकि) सभी मनुष्य सब प्रकार से मेरे (ही) मार्ग का अनुसरण करते हैं।

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