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Chapter 3 – कर्मयोग Shloka-9

Chapter-3_3.9

SHLOKA

यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबन्धनः।
तदर्थं कर्म कौन्तेय मुक्तसंगः समाचर।।3.9।।

PADACHHED

यज्ञार्थात्_कर्मण:_अन्यत्र, लोक:_अयम्‌, कर्म-बन्धन:,
तदर्थम्‌, कर्म, कौन्तेय, मुक्त-सङ्ग:, समाचर ॥ ९ ॥

ANAVYA

यज्ञार्थात् कर्मणः अन्यत्र अयं लोक: (मनुष्यजातिः) कर्मबन्धन: (भवति)
(अतः) (हे) कौन्तेय! (त्वम्) मुक्तसङ्ग: (भूत्वा) तदर्थं कर्म समाचर।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

यज्ञार्थात् [यज्ञ के निमित्त किये जाने वाले], कर्मणः [कर्मो से], अन्यत्र [अतिरिक्त ((दूसरे कर्मो में लगा हुआ ही))], अयम् [यह], लोक: [मनुष्य-समुदाय], कर्मबन्धन: (भवति) [कर्मो से बँधता है।],
{(अतः) [इसलिए]}, (हे) कौन्तेय (त्वम्) [(इसलिये) हे अर्जुन! (तुम)], मुक्तसङ्ग: [आसक्ति से रहित (होकर)], तदर्थम् [उस ((यज्ञ)) के निमित्त ((ही भलीभाँति))], कर्म [((कर्तव्य)) कर्म], समाचर [करो।],

ANUVAAD

यज्ञ के निमित्त किये जाने वाले कर्मो से अतिरिक्त ((दूसरे कर्मो में लगा हुआ ही)) यह लोक (मनुष्य-समुदाय) कर्मो से बँधता है।
(इसलिये) (हे) अर्जुन! (तुम) आसक्ति से रहित (होकर) उस ((यज्ञ)) के निमित्त ((ही भलीभाँति)) ((कर्तव्य)) कर्म करो।

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