Chapter 3 – कर्मयोग Shloka-35

Chapter-3_3.35

SHLOKA

श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।
स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः।।3.35।।

PADACHHED

श्रेयान्_स्व-धर्म:, विगुण:, पर-धर्मात्_स्व-नुष्ठितात्‌
स्व-धर्मे, निधनम्‌, श्रेय: , पर-धर्म:, भयावह: ॥ ३५ ॥

ANAVYA

स्वनुष्ठितात्‌ परधर्मात्‌ विगुण: (अपि) स्वधर्म: श्रेयान्‌ (अस्ति)।
स्वधर्मे (तु) निधनं (अपि) श्रेय:, परधर्म: भयावह: (च) (अस्ति) ।

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स्वनुष्ठितात् [अच्छी प्रकार से आचरण में लाये हुए], परधर्मात् [दूसरे के धर्म से], विगुण: (अपि) [गुणरहित (भी)], स्वधर्म: [अपना धर्म], श्रेयान् (अस्ति) [अति उत्तम है।],
स्वधर्मे (तु) [अपने धर्म में (तो)], निधनम् (अपि) [मरना (भी)], श्रेय: [कल्याणकारक है ({च [और])], परधर्म: [दूसरे का धर्म], भयावह: (अस्ति) [भय को देने वाला है।],

ANUVAAD

अच्छी प्रकार से आचरण में लाये हुए दूसरे के धर्म से गुणरहित (भी) अपना धर्म अति उत्तम है।
अपने धर्म में (तो) मरना (भी) कल्याणकारक है (और) दूसरे का धर्म भय को देने वाला है।

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