SHLOKA
इन्द्रियस्येन्द्रियस्यार्थे रागद्वेषौ व्यवस्थितौ।
तयोर्न वशमागच्छेत्तौ ह्यस्य परिपन्थिनौ।।3.34।।
तयोर्न वशमागच्छेत्तौ ह्यस्य परिपन्थिनौ।।3.34।।
PADACHHED
इन्द्रियस्य_इन्द्रियस्य_अर्थे, राग-द्वेषौ, व्यवस्थितौ,
तयो:_ न, वशम्_आगच्छेत्_तौ, हि_अस्य, परिपन्थिनौ ॥ ३४ ॥
तयो:_ न, वशम्_आगच्छेत्_तौ, हि_अस्य, परिपन्थिनौ ॥ ३४ ॥
ANAVYA
इन्द्रियस्य इन्द्रियस्य अर्थे रागद्वेषौ व्यवस्थितौ (स्तः), (जनः) तयोः (रागद्वेषयोः)
वशं न आगच्छेत्; हि तौ अस्य (सुपथस्य) परिपन्थिनौ (स्तः)।
वशं न आगच्छेत्; हि तौ अस्य (सुपथस्य) परिपन्थिनौ (स्तः)।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
इन्द्रियस्य इन्द्रियस्य [इन्द्रिय-इन्द्रिय के], अर्थे [अर्थ में अर्थात् प्रत्येक इन्द्रिय के विषय में], रागद्वेषौ [राग और द्वेष], व्यवस्थितौ (स्तः) [छिपे हुए स्थित हैं। {(जनः) [मनुष्यको]}], तयोः (रागद्वेषयोः) [उन दोनों (राग एवम द्वेष) के], वशम् [वश में], न [नहीं], आगच्छेत् [होना चाहिये;], हि [क्योंकि], तौ [वे दोनों ((ही))], अस्य (सुपथस्य) [इसके (कल्याणमार्ग में )], परिपन्थिनौ [विघ्न करने वाले महान् शत्रु हैं।],
ANUVAAD
इन्द्रिय-इन्द्रिय के अर्थ में अर्थात् प्रत्येक इन्द्रिय के विषय में राग और द्वेष छिपे हुए स्थित हैं। (मनुष्य को) उन दोनों (राग एवं द्वेष) के
वश में नहीं होना चाहिये; क्योंकि वे दोनों ((ही)) इसके (कल्याणमार्ग में ) विघ्न करने वाले महान् शत्रु हैं।
वश में नहीं होना चाहिये; क्योंकि वे दोनों ((ही)) इसके (कल्याणमार्ग में ) विघ्न करने वाले महान् शत्रु हैं।