SHLOKA
ये त्वेतदभ्यसूयन्तो नानुतिष्ठन्ति मे मतम्।
सर्वज्ञानविमूढांस्तान्विद्धि नष्टानचेतसः।।3.32।।
सर्वज्ञानविमूढांस्तान्विद्धि नष्टानचेतसः।।3.32।।
PADACHHED
ये, तु_एतत्_अभ्यसूयन्त: , न_अनुतिष्ठन्ति, मे, मतम्,
सर्व-ज्ञान-विमूढान्_तान्_विद्धि, नष्टान्_अचेतस: ॥ ३२ ॥
सर्व-ज्ञान-विमूढान्_तान्_विद्धि, नष्टान्_अचेतस: ॥ ३२ ॥
ANAVYA
तु ये (जनाः) (मयि) अभ्यसूयन्त: मे एतत् मतं
न अनुतिष्ठन्ति तान् अचेतसः (त्वम्) सर्वज्ञानविमूढान् नष्टान् (च) (एव) विद्धि।
न अनुतिष्ठन्ति तान् अचेतसः (त्वम्) सर्वज्ञानविमूढान् नष्टान् (च) (एव) विद्धि।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
तु [परंतु], ये (जनाः) [जो (मनुष्य), {मयि (मुझमें)}], अभ्यसूयन्त: [दोष का आरोप करते हुए], मे [मेरे], एतत् [इस], मतम् [मत के],
न अनुतिष्ठन्ति [अनुसार नहीं चलते हैं,], तान् [उन], अचेतसः (त्वम्) [मूर्खों को (तुम)], सर्वज्ञानविमूढान् (च) [सम्पूर्ण ज्ञानों में मोहित (और)], नष्टान् (एव) [नष्ट हुए (ही)], विद्धि [समझो।],
न अनुतिष्ठन्ति [अनुसार नहीं चलते हैं,], तान् [उन], अचेतसः (त्वम्) [मूर्खों को (तुम)], सर्वज्ञानविमूढान् (च) [सम्पूर्ण ज्ञानों में मोहित (और)], नष्टान् (एव) [नष्ट हुए (ही)], विद्धि [समझो।],
ANUVAAD
परंतु जो (मनुष्य) (मुझमें) दोष का आरोप करते हुए मेरे इस मत के
अनुसार नहीं चलते हैं, उन मूर्खों को (तुम) सम्पूर्ण ज्ञानों में मोहित (और) नष्ट हुआ (ही) समझो।
अनुसार नहीं चलते हैं, उन मूर्खों को (तुम) सम्पूर्ण ज्ञानों में मोहित (और) नष्ट हुआ (ही) समझो।