SHLOKA
यदि ह्यहं न वर्तेयं जातु कर्मण्यतन्द्रितः।
मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः।।3.23।।
मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः।।3.23।।
PADACHHED
यदि, हि_अहम्, न, वर्तेयम्, जातु, कर्मणि_अतन्द्रित:,
मम, वर्त्म_अनुवर्तन्ते, मनुष्या:, पार्थ, सर्वश: ॥ २३ ॥
मम, वर्त्म_अनुवर्तन्ते, मनुष्या:, पार्थ, सर्वश: ॥ २३ ॥
ANAVYA
हि (हे) पार्थ! यदि जातु अहम् अतन्द्रित: कर्मणि न
वर्तेयम् (तर्हि अनर्थः स्यात्), (हि) मनुष्या: सर्वशः मम (एव) वर्त्म अनुवर्तन्ते।
वर्तेयम् (तर्हि अनर्थः स्यात्), (हि) मनुष्या: सर्वशः मम (एव) वर्त्म अनुवर्तन्ते।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
हि [क्योंकि], (हे) पार्थ [हे पार्थ!], यदि [यदि], जातु [कदाचित्], अहम् [मैं], अतन्द्रित: [सावधान होकर], कर्मणि [कर्मो में], न [न],
वर्तेयम् [बरतूँ अर्थात् कर्मों का पालन न करूँ], {(तर्हि अनर्थः स्यात्,)[तो बड़ी हानि हो जाय;]}, {(हि) [क्योंकि]}, मनुष्या: [मनुष्य], सर्वशः [सब प्रकार से], मम [मेरे (ही)], वर्त्म [मार्ग का], अनुवर्तन्ते [अनुसरण करते हैं ।],
वर्तेयम् [बरतूँ अर्थात् कर्मों का पालन न करूँ], {(तर्हि अनर्थः स्यात्,)[तो बड़ी हानि हो जाय;]}, {(हि) [क्योंकि]}, मनुष्या: [मनुष्य], सर्वशः [सब प्रकार से], मम [मेरे (ही)], वर्त्म [मार्ग का], अनुवर्तन्ते [अनुसरण करते हैं ।],
ANUVAAD
क्योंकि हे पार्थ! यदि कदाचित् मैं सावधान होकर कर्मो में न
बरतूँ अर्थात् कर्मों का पालन न करूँ (तो बड़ी हानि हो जाय;) (क्योंकि) मनुष्य सब प्रकार से मेरे (ही) मार्ग का अनुसरण करते हैं।
बरतूँ अर्थात् कर्मों का पालन न करूँ (तो बड़ी हानि हो जाय;) (क्योंकि) मनुष्य सब प्रकार से मेरे (ही) मार्ग का अनुसरण करते हैं।