Chapter 3 – कर्मयोग Shloka-16

Chapter-3_3.16

SHLOKA

एवं प्रवर्तितं चक्रं नानुवर्तयतीह यः।
अघायुरिन्द्रियारामो मोघं पार्थ स जीवति।।3.16।।

PADACHHED

एवम्‌, प्रवर्तितम्‌, चक्रम्, न_अनुवर्तयति_इह, य:,
अघायु:_इन्द्रियाराम:, मोघम्‌, पार्थ, स:, जीवति ॥ १६ ॥

ANAVYA

(हे) पार्थ! य: (पुरुषः) इह एवं प्रवर्तितं चक्रं न अनुवर्तयति
स इन्द्रियाराम: अघायुः (पुरुषः) मोघं (एव) जीवति।

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(हे) पार्थ [हे पार्थ! ((अर्जुन!))], य: [जो (पुरुष)], इह [इस लोक में], एवम् [इस प्रकार परम्परा से], प्रवर्तितम् [प्रचलित], चक्रम् [सृष्टि चक्र के], न, अनुवर्तयति [अनुकूल नहीं बरतता अर्थात् अपने कर्तव्य का पालन नहीं करता,],
स: [वह], इन्द्रियाराम: [इन्द्रियों के द्वारा भोगों में रमण करनेवाला], अघायुः(पुरुषः) [पापायु (पुरुष)], मोघम् [व्यर्थ (ही)], जीवति [जीता है।],

ANUVAAD

हे पार्थ! ((अर्जुन!)) जो (पुरुष) इस लोक में इस प्रकार परम्परा से प्रचलित सृष्टि चक्र के अनुकूल नहीं बरतता अर्थात् अपने कर्तव्य का पालन नहीं करता,
वह इन्द्रियों के द्वारा भोगों में रमण करनेवाला पापायु (पुरुष) व्यर्थ (ही) जीता है।

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