SHLOKA
तस्माद्यस्य महाबाहो निगृहीतानि सर्वशः।
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता।।2.68।।
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता।।2.68।।
PADACHHED
तस्मात्_यस्य, महाबाहो, निगृहीतानि, सर्वश:,
इन्द्रियाणि_इन्द्रियार्थेभ्य:_तस्य, प्रज्ञा, प्रतिष्ठिता ॥ ६८ ॥
इन्द्रियाणि_इन्द्रियार्थेभ्य:_तस्य, प्रज्ञा, प्रतिष्ठिता ॥ ६८ ॥
ANAVYA
तस्मात् (हे) महाबाहो! यस्य (पुरुषस्य) इन्द्रियाणि इन्द्रियार्थेभ्य:
सर्वशः निगृहीतानि, तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता।
सर्वशः निगृहीतानि, तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
तस्मात् [इसलिये], (हे) महाबाहो! [हे महाबाहो!], यस्य (पुरुषस्य) [जिस (पुरुष) की], इन्द्रियाणि [इन्द्रियाँ], इन्द्रियार्थेभ्य: [इन्द्रियों के विषयों से],
सर्वशः [सब प्रकार से], निगृहीतानि [रोकी हुई हैं,], तस्य [उसी की], प्रज्ञा [बुद्धि], प्रतिष्ठिता [स्थिर है।],
सर्वशः [सब प्रकार से], निगृहीतानि [रोकी हुई हैं,], तस्य [उसी की], प्रज्ञा [बुद्धि], प्रतिष्ठिता [स्थिर है।],
ANUVAAD
इसलिये हे महाबाहो! जिस (पुरुष) की इन्द्रियाँ इन्द्रियों के विषयों से
सब प्रकार से रोकी हुई हैं, उसी की बुद्धि स्थिर है।
सब प्रकार से रोकी हुई हैं, उसी की बुद्धि स्थिर है।