SHLOKA
इन्द्रियाणां हि चरतां यन्मनोऽनुविधीयते।
तदस्य हरति प्रज्ञां वायुर्नावमिवाम्भसि।।2.67।।
तदस्य हरति प्रज्ञां वायुर्नावमिवाम्भसि।।2.67।।
PADACHHED
इन्द्रियाणाम्, हि चरताम्, यत्_मन:_अनु_विधीयते,
तत्_अस्य, हरति, प्रज्ञाम्, वायुः_नावम्_इव_अम्भसि ॥ ६७ ॥
तत्_अस्य, हरति, प्रज्ञाम्, वायुः_नावम्_इव_अम्भसि ॥ ६७ ॥
ANAVYA
हि इव अम्भसि नावं वायुः हरति (तथैव) (विषयाणाम्) चरताम् इन्द्रियाणां
मन: यत् अनु विधीयते तत् (इन्द्रियम्) अस्य (अयुक्तस्य) प्रज्ञां (हरति)।
मन: यत् अनु विधीयते तत् (इन्द्रियम्) अस्य (अयुक्तस्य) प्रज्ञां (हरति)।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
हि [क्योंकि], इव [जैसे], अम्भसि [जल में ((चलने वाली))], नावम् [नौका को], वायुः [वायु], हरति [हर लेती है,], {(तथैव) [वैसे ही]},{(विषयाणाम्) [विषयों में]}, चरताम् [विचरती हुई], इन्द्रियाणाम् [इन्द्रियों में से],
मन: [मन], यत् [जिस ((इन्द्रिय के))], अनु [साथ], विधीयते [रहता है,], तत् (इन्द्रियम्) [वह ((एक ही)) (इन्द्रिय)], अस्य (अयुक्तस्य) [इस (अयुक्त पुरुष) की], प्रज्ञाम् [बुद्धि को], {(हरति) [हर लेती है]}।],
मन: [मन], यत् [जिस ((इन्द्रिय के))], अनु [साथ], विधीयते [रहता है,], तत् (इन्द्रियम्) [वह ((एक ही)) (इन्द्रिय)], अस्य (अयुक्तस्य) [इस (अयुक्त पुरुष) की], प्रज्ञाम् [बुद्धि को], {(हरति) [हर लेती है]}।],
ANUVAAD
क्योंकि जैसे जल में ((चलने वाली)) नौका को वायु हर लेती है, (वैसे ही) (विषयों में) विचरती हुई इन्द्रियों में से
मन जिस ((इन्द्रिय के)) साथ रहता है, वह ((एक ही)) (इन्द्रिय) इस (अयुक्त पुरुष) की बुद्धि को (हर लेती है)।
मन जिस ((इन्द्रिय के)) साथ रहता है, वह ((एक ही)) (इन्द्रिय) इस (अयुक्त पुरुष) की बुद्धि को (हर लेती है)।