SHLOKA
तानि सर्वाणि संयम्य युक्त आसीत मत्परः।
वशे हि यस्येन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता।।2.61।।
वशे हि यस्येन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता।।2.61।।
PADACHHED
तानि, सर्वाणि, संयम्य, युक्त:, आसीत, मत्पर:,
वशे, हि, यस्य, इन्द्रियाणि, तस्य, प्रज्ञा, प्रतिष्ठिता ॥ ६१ ॥
वशे, हि, यस्य, इन्द्रियाणि, तस्य, प्रज्ञा, प्रतिष्ठिता ॥ ६१ ॥
ANAVYA
तानि सर्वाणि (इन्द्रियाणि) संयम्य युक्तः मत्परः आसीत,
हि यस्य (पुरुषस्य) इन्द्रियाणि वशे (भवन्ति) तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता।
हि यस्य (पुरुषस्य) इन्द्रियाणि वशे (भवन्ति) तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
तानि [((इसलिए साधक को चाहिये कि वह)) उन], सर्वाणि [सभी (इन्द्रियों) को], संयम्य [वश में करके], युक्त; [समाहित चित्त हुआ], मत्परः [मेरे परायण होकर], आसीत [((ध्यान में)) बैठे;],
हि [क्योंकि], यस्य (पुरुषस्य) [जिस (पुरुष) की], इन्द्रियाणि [इन्द्रियाँ], वशे [वश में], {(भवन्ति) [होती हैं]}, तस्य [उसकी], प्रज्ञा [बुद्धि], प्रतिष्ठिता [स्थिर हो जाती है।],
हि [क्योंकि], यस्य (पुरुषस्य) [जिस (पुरुष) की], इन्द्रियाणि [इन्द्रियाँ], वशे [वश में], {(भवन्ति) [होती हैं]}, तस्य [उसकी], प्रज्ञा [बुद्धि], प्रतिष्ठिता [स्थिर हो जाती है।],
ANUVAAD
((इसलिए साधक को चाहिये कि वह)) उन सभी (इन्द्रियों) को वश में करके समाहित चित्त हुआ मेरे परायण होकर ((ध्यान में)) बैठे;
क्योंकि जिस (पुरुष) की इन्द्रियाँ वश में (होती हैं), उसकी बुद्धि स्थिर हो जाती है।
क्योंकि जिस (पुरुष) की इन्द्रियाँ वश में (होती हैं), उसकी बुद्धि स्थिर हो जाती है।