Chapter 2 – साङ्ख्ययोग Shloka-59

Chapter-2_2.59

SHLOKA

विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिनः।
रसवर्जं रसोऽप्यस्य परं दृष्ट्वा निवर्तते।।2.59।।

PADACHHED

विषया:, विनिवर्तन्ते, निराहारस्य, देहिन:,
रस-वर्जम्‌, रस:_अपि_अस्य, परम्, दृष्ट्वा, निवर्तते ॥ ५९ ॥

ANAVYA

निराहारस्य देहिन: (शब्दादि) विषया: रसवर्जम्‌ विनिवर्तन्ते। (परञ्च)
अस्य (स्थितप्रज्ञस्य) (तु) रस: अपि परं दृष्ट्वा निवर्तते।

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निराहारस्य [((इन्द्रियों के द्वारा)) विषयों को ग्रहण न करने वाले], देहिन: [पुरुष के], (शब्दादि) विषया: [(शब्दादि) विषय ], रसवर्जम्‌ [आसक्ति के बिना ((ही))], विनिवर्तन्ते [निवृत्त होते हैं अर्थात् (विषयों में रहने वाली आसक्ति निवृत्त नहीं होती।], {(परञ्च) [परन्तु]},
अस्य (स्थितप्रज्ञस्य) (तु) [इस (स्थितप्रज्ञ पुरुष की) (तो)], रस: [आसक्ति], अपि [भी], परम् [परमात्मा का], दृष्ट्वा [साक्षात्कार करके], निवर्तते [निवृत्त हो जाती है।],

ANUVAAD

((इन्द्रियों के द्वारा)) विषयों को ग्रहण न करने वाले पुरुष के (शब्दादि) विषय आसक्ति के बिना ((ही)) निवृत्त होते हैं अर्थात् विषयों में रहने वाली आसक्ति निवृत्त नहीं होती।
(परन्तु) इस (स्थितप्रज्ञ पुरुष की) (तो) आसक्ति भी परमात्मा का साक्षात्कार करके निवृत्त हो जाती है।

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