SHLOKA
योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय।
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते।।2.48।।
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते।।2.48।।
PADACHHED
योगस्थ:, कुरु, कर्माणि, सङ्गम्, त्यक्त्वा, धनञ्जय,
सिद्ध्यसिद्ध्योः, सम:, भूत्वा, समत्वम्, योग:, उच्यते ॥ ४८ ॥
सिद्ध्यसिद्ध्योः, सम:, भूत्वा, समत्वम्, योग:, उच्यते ॥ ४८ ॥
ANAVYA
(हे) धनञ्जय! (त्वं) सङ्गं त्यक्त्वा (अपि च) सिद्ध्यसिद्ध्यो: सम: भूत्वा
योगस्थ: कर्माणि कुरु (हि) समत्वं योग: उच्यते।
योगस्थ: कर्माणि कुरु (हि) समत्वं योग: उच्यते।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
(हे) धनञ्जय! [हे धनंजय!], (त्वं) सङ्गम् [(तुम) आसक्ति को], त्यक्त्वा [त्यागकर], {(अपि च) [तथा]}, सिद्ध्यसिद्ध्यो: [सिद्धि और असिद्धि में], सम: [समान ((बुद्धि वाला))], भूत्वा [होकर],
योगस्थ: [योग में स्थित हुआ], कर्माणि [कर्तव्य कर्मों को], कुरु [करो,], {(हि) [क्योंकि])}, समत्वम् [समत्व (ही)], योग: [योग], उच्यते [कहलाता है।],
योगस्थ: [योग में स्थित हुआ], कर्माणि [कर्तव्य कर्मों को], कुरु [करो,], {(हि) [क्योंकि])}, समत्वम् [समत्व (ही)], योग: [योग], उच्यते [कहलाता है।],
ANUVAAD
हे धनञ्जय! (तुम) आसक्ति को त्यागकर (तथा) सिद्धि और असिद्धि में समान ((बुद्धि वाला)) होकर योग में स्थित हुआ कर्तव्यकर्मों को करो (क्योंकि) समत्व ही योग कहलाता है।।४८।।