Chapter 2 – साङ्ख्ययोग Shloka-46

Chapter-2_2.46

SHLOKA

यावानर्थ उदपाने सर्वतः संप्लुतोदके।
तावान्सर्वेषु वेदेषु ब्राह्मणस्य विजानतः।।2.46।।

PADACHHED

यावान्_अर्थ:, उदपाने, सर्वत:, सम्प्लुतोदके,
तावान्_सर्वेषु, वेदेषु, ब्राह्मणस्य, विजानत: ॥ ४६ ॥

ANAVYA

सर्वत: सम्प्लुतोदके (प्राप्ते सति) उदपाने (जनस्य) यावान्‌ अर्थ:
(भवति), (ब्रह्मणं) विजानत: ब्राह्मणस्य सर्वेषु वेदेषु तावान्‌ (अर्थः भवति)।

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सर्वत: [सब ओर से], सम्प्लुतोदके [परिपूर्ण जलाशय के], {(प्राप्ते सति) [प्राप्त हो जाने पर]}, उदपाने [छोटे जलाशय में], {(जनस्य) [मनुष्य का]}, यावान् [जितना], अर्थ: [प्रयोजन],
{(भवति) [रहता है,]), {(ब्रह्मणं) [ब्रह्म को]}, विजानत: [ तत्वतः जानने वाले], ब्राह्मणस्य [ब्राह्मण का], सर्वेषु [समस्त], वेदेषु [वेदों में], तावान् [उतना (ही)], '{(अर्थः भवति) [प्रयोजन रह जाता है]}।


ANUVAAD

सब ओर से परिपूर्ण जलाशय के (प्राप्त हो जाने पर) छोटे जलाशय में (मनुष्य का) जितना प्रयोजन रहता है, (ब्रह्म को) तत्व से जानने वाले ब्राह्मण का समस्त वेदों में उतना (ही प्रयोजन रह जाता है)।।४६।।

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