SHLOKA
व्यवसायात्मिका बुद्धिरेकेह कुरुनन्दन।
बहुशाखा ह्यनन्ताश्च बुद्धयोऽव्यवसायिनाम्।।2.41।।
बहुशाखा ह्यनन्ताश्च बुद्धयोऽव्यवसायिनाम्।।2.41।।
PADACHHED
व्यवसायात्मिका, बुद्धि:_एका_इह, कुरुनन्दन,
बहु-शाखा:, हि_अनन्ता:_च, बुद्धय:_अव्यवसायिनाम् ॥ ४१ ॥
बहु-शाखा:, हि_अनन्ता:_च, बुद्धय:_अव्यवसायिनाम् ॥ ४१ ॥
ANAVYA
(हे) कुरुनन्दन! इह व्यवसायात्मिका बुद्धि: एका (भवति) (परञ्च)
अव्यवसायिनां बुद्धय: हि बहुशाखा: च अनन्ता: (भवन्ति)।
अव्यवसायिनां बुद्धय: हि बहुशाखा: च अनन्ता: (भवन्ति)।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
(हे) कुरुनन्दन! [हे अर्जुन! ((कुरु के संतान, अर्जुन!))], इह [इस ((कर्मयोग में))], व्यवसायात्मिका [निश्चयात्मिका ((जो बिल्कुल निश्चित हो ऐसी))], बुद्धि: [बुद्धि:], एका [एक ही], {(भवति) [होती है;])} , {(परञ्च) [किंतु]},
अव्यवसायिनाम् [अस्थिर विचार वाले (विवेकहीन सकाम मनुष्यों की], बुद्धय: [बुद्धियाँ], हि [निश्चय ही], बहुशाखा: [बहुत भेदों वाली], च [और], अनन्ता: [अनन्त(होती हैं)।],
अव्यवसायिनाम् [अस्थिर विचार वाले (विवेकहीन सकाम मनुष्यों की], बुद्धय: [बुद्धियाँ], हि [निश्चय ही], बहुशाखा: [बहुत भेदों वाली], च [और], अनन्ता: [अनन्त(होती हैं)।],
ANUVAAD
हे कुरुनन्दन! ((कुरु के संतान, अर्जुन!)) इस ((कर्मयोग में)) निश्चयात्मिका ((जो बिल्कुल निश्चित हो ऐसी)) बुद्धि एक ही होती है; (किन्तु) अस्थिर विचार वाले ((विवेकहीन कामी मनुष्यों)) की बुद्धियाँ निश्चय ही बहुत भेदों वाली और अनन्त होती हैं। ।।४१।।